हिसार :- भारतीय हॉकी टीम की पूर्व कप्तान सविता पूनिया, आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। खेतों में मैदान बनाकर हॉकी का अभ्यास करने वाली सविता पूनिया ने अपने दम पर विश्व स्तर पर अपना नाम बनाया। सविता की प्रतिभा की पहचान छठी कक्षा से हो गई थी। प्राइमरी शिक्षा के दौरान खेल शिक्षक दीपचंद कंबोज ने सविता को हॉकी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। पिता महेंद्र पूनिया, जो स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट हैं, ने खेतों में मैदान बनाकर दिया। परिवार और शिक्षकों के प्रयासों का परिणाम है कि सविता आज देश का प्रतिनिधित्व करती है।
मिल चुका है भीम अवॉर्ड
सिरसा के गांव जोधकां की रहने वाली सविता पूनिया को वर्ष 2018 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। सविता पूनिया को भीम अवॉर्ड भी मिल चुका है। सविता पूनिया ने वर्ष 2023 में आयोजित एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने झारखंड के रांची में आयोजित 2023 महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय टीम को खिताबी जीत दिलाई। उनकी कप्तानी में भारत ने विश्व में अपनी सर्वश्रेष्ठ छठी रैंकिंग भी हासिल की।
पिता ने दिया बेटी का साथ
सविता पूनिया के पिता महेंद्र पूनिया ने अपनी बेटी को आगे बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की। महेंद्र पूनिया बताते हैं कि उस समय उनका वेतन ज्यादा नहीं था। लेकिन बेटी के टैलेंट को देखकर उन्होंने ठाना कि वो सविता के खेल काे आगे लेकर जाएंगे। इस दौरान जब सविता ने खेलना शुरू किया तब उसी साल सविता ने जूनियर वर्ग में नेशनल लेवल की हॉकी प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत लिया।
सुविधाओं के अभाव के बावजूद किया संघर्ष
सविता पूनिया के पिता महेंद्र पूनिया ने बताया कि उस समय सुविधाओं का अभाव था। इस दौरान सविता पूनिया ने खेतों में अभ्यास किया। सविता को आगे ले जाने में उनके कोच सुंदर सिंह खरब का भी महत्वपूर्ण योगदान है। महेंद्र पूनिया ने बताया कि सविता पूनिया बचपन से ही बहुत मेहनती है। सविता को घर से दूर रहने की आदत नहीं थी। इसलिए शुरुआत में उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद वह नियमों की पक्की है। इस कारण अपने आप को संभाला और संघर्ष किया।