नई दिल्ली:- सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय पर विचार नहीं कर रही है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में यह जानकारी दी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बैंकों के विलय से बेहतर तालमेल में मदद मिली है। पंकज चौधरी ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय ने भौगोलिक विविधीकरण को सुविधाजनक बनाने, नए बाजारों में प्रवेश करने और कस्टमर बेस का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा- बैंकिंग आउटलेट्स के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब उन दूरदराज के क्षेत्रों में एक बड़े कस्टमर बेस की डिमांड को पूरा करते हैं जहां वित्तीय सेवाएं दुर्लभ थीं। यह न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है बल्कि इस क्षेत्र में आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करता है। बता दें कि केंद्र सरकार ने आखिरी बार साल 2019 में 10 बैंकों को चार में मिला दिया था। यह एक अप्रैल, 2020 से प्रभावी हुआ।
किस बैंक का किसमें विलय
आखिरी बार ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया गया। वहीं, आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय किया गया। इसके अलावा, सिंडिकेट बैंक को केनरा बैंक में और इलाहाबाद बैंक को इंडियन बैंक में विलय कर दिया गया। साल 2019 में सरकार ने विजया बैंक और देना बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय किया था। इससे पहले सरकार ने एसबीआई के पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक में विलय कर दिया था।
सरकारी फंडिंग पर निर्भर नहीं बैंक
इस बीच, मंगलवार को लोकसभा ने बैंककारी विधियां संशोधन विधेयक 2024 को पारित कर दिया। इस दौरान सदन में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारतीय बैंक आज स्थिर, अच्छी हालत में हैं और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचा रहे हैं। भारत को अपने बैंकिंग क्षेत्र पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पेशेवर रूप से संचालित हो रहे हैं और सरकारी फंडिंग पर निर्भर नहीं हैं।